Aachar sanhita क्या है और क्यों लगाई जाती है?

आज हम बात करने बाले की Aachar sanhita क्या है और ये क्यों लगाई जाती है और किसलिए लगाई जाती है क्या होता जब Aachar sanhita लगाई जाती है। अचार संहिता का नाम आपको अक्सर जब सुनाई देता होगा जब आपके या किसी राज्य में चुनाव आने बाले होते है।

नियंत्रण का महत्व

स्वतंत्रता सबको प्यारी है कोई भी अपनी स्वतंत्रता खोना नहीं चाहता हम सभी चाहते हैं कि हम बेरोकटोक अपनी इच्छाओं को पूरा करते रहे परंतु यदि हम थोड़ा ध्यान से सोचें तो पाएंगे कि यदि हम सभी पूर्णतः स्वतंत्र रहे तो हम सब में से कोई भी स्वतंत्र नहीं रह पाएगा। स्वयं की और बाकी सब की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए कुछ उचित नियंत्रण आवश्यक हो जाते हैं और यह नियंत्रण न केवल हमारी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखते हैं बल्कि हमारी और हमारे समाज दोनों को एक अच्छा जीवन प्रदान करते हैं।

जहां सबको समान अवसर मिलते हैं और नियमों का उल्लंघन करने पर सज़ा भी मिलती है। इस प्रकार सभी नियंत्रण हमारे लिए केवल समस्या लेकर नहीं आते बल्कि कई बार कई समस्याओं का समाधान बनकर भी आते हैं।

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एक राजनीतिक त्योहार

क्योंकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और एक लोकतांत्रिक देश बिना चुनावों के तो उसी प्रकार प्रतीत होता है जैसे बिना प्राण के देह, इसीलिए हम निश्चित अंतराल के बाद चुनावी रूपी त्यौहार का आयोजन करते हैं और इस त्योहार के लिए पूरा देश बहुत मेहनत करता है न केवल चुनाव के क्षेत्र निर्धारित होते हैं बल्कि मतदाता सूचियां भी बनती है। चुनाव की तारीख निर्धारित होती है और चुनाव कितने चरणों में कराया जाएगा यह भी निर्धारित किया जाता है।

Aachar sanhita क्या है

विघ्नहर्ता चुनाव आयोग की भूमिका

इस त्योहार में जब तक कम पार्टियां और कम सदस्य भागीदारी करते थे तब तक तो कोई समस्या नहीं थी परंतु बढ़ती पार्टियां, बढ़ता प्रतिद्वंदिता का भाव और विजय पाने के लिए नए हथकंडा का प्रयोग इस त्योहार में विघ्न डालने का काम करने लगा है और जबकि देश की  जनसंख्या भी बहुत तेजी से बढ़ रही है इसलिए ज्यादा से ज्यादा जनता को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए भी यह कार्य किए जाते हैं।

अब क्योंकि अनुच्छेद 324 के तहत इस त्योहार को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाए रखने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है तो यह उसी की जिम्मेदारी है कि वह इन विघ्नों को हटाए या कम करे ताकि सभी पार्टियों को न केवल समान अवसर प्राप्त हो बल्कि चुनाव प्रचार भी मछली बाजार की भांति प्रतीत ना हो।

पोस्टरों से गायब होती दीवारें, कानों को फोड़ते लाउडस्पीकर, खुलेआम शराब बांटना, बाहुबल का प्रयोग करके भोली भाली जनता को डराना, उन्हें पैसा देकर उनके वोट को खरीद लेना या चुनाव के दिन पोलिंग बूथ पर ही नियंत्रण कर लेना यह सभी हथकंडे खत्म हो और चुनाव बिना किसी बड़ी समस्या के आराम पूर्वक समाप्त हो पाए।

चुनाव आयोग द्वारा अपनी इस जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए ही Aachar sanhita का जन्म हुआ।

आचार संहिता क्या है (aachar sanhita kya hai)

Aachar sanhita कुछ और नहीं बल्कि राजनीतिक दलों और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के आचरण को व्यवस्थित करना और निष्पक्ष व स्वतंत्र चुनाव कराने के लिए कुछ दिशानिर्देश है। जिनका पालन चुनाव की तारीख के ऐलान होने के दिन से ही करना पड़ता है और यह दिशा निर्देश चुनाव के परिणाम आने तक जारी रहते हैं। Aachar sanhita किसी कानून के तहत नहीं बनी है बल्कि वे राजनीतिक दलों के बीच आपसी सहमति से ही निर्मित हुई है ताकि कोई भी राजनीतिक दल या चुनाव में भागीदारी करने वाला उम्मीदवार अपनी मनमानी ना करें। सरकारी संपत्ति, सरकारी स्थान और जनता के ऊपर अपना प्रभुत्व ना जमा ले।

Aachar sanhita का जन्म what is aachar sanhita

प्राय हमारे देश में सभी नियम व सभी कानून बहुत संवाद व बहस के बाद लागू होते हैं ताकि कोई यह न कहे कि यह  किसी विशेष व्यक्ति द्वारा या विशेष समूह द्वारा अपने मन से रचा गया षड्यंत्र है परंतु जैसा कि हम जान चुके हैं Aachar sanhita कानूनी नहीं है परंतु इसका जन्म आम सहमति से ही हुआ है।

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सर्वप्रथम 1960 में केरल विधानसभा के चुनाव के adarsh aachar sanhita का जन्म हुआ और 1962 के लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने इस  संहिता को सभी राजनीतिक दलों के बीच वितरितकिया और 1967 के चुनाव में यह आग्रह किया गया कि सभी राजनीतिक पार्टियां इसका पालन करें और इनका पालन हुआ भी। तभी  से यह राजनीतिक पार्टियों व चुनाव आयोग के मध्य आपसी सहमति से निरंतर लागू है। आचार संहिता के लागू हो जाते ही राजनीतिक भागीदारों पर कई नियंत्रण लग जाते हैं जिन का वर्णन  इस  प्रकार है;

ताकि सत्ताधारी दल ही सदा सत्ता में ना बना रहे

सत्ताधारी दल जिसे न केवल बहुमत प्राप्त होता है बल्कि आम जनता का विश्वास भी प्राप्त होता है वह चाहे तो अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर के अपने पद को सशक्त कर सकता है और अगले चुनावों में भी विजय प्राप्त कर सकता है परंतु ऐसा करके अन्य पार्टियों के बीच हीन भावना विकसित होगी और यह चुनाव स्वतंत्र व निष्पक्ष  नहीं कहलाए जाएंगे।

इसीलिए आदर्श आचार संहिता सत्ताधारी दल पर कुछ विशेष प्रतिबंध लगाती है जिसके तहत सत्ताधारी दल न केवल सरकारी सुविधायों  बल्कि अन्य सरकारी  मशीनरी का प्रयोग चुनाव प्रचार के लिए नहीं कर सकता। इस बीच वह कोई नई योजना भी लागू नहीं कर सकता। इस प्रकार सत्ताधारी दल भी बाकी अन्य दलों की भांति  ही चुनाव में भागीदारी करेगा वह अपनी किसी विशेष शक्ति का प्रयोग या उसका दुरुपयोग नहीं करेगा।

मंत्रियों पर अंकुश

हमारे देश में मंत्री भी विशेष हैसियत के पद पर होते हैं ।वह चाहे तो खुले रुप से या छिपकर किसी पार्टी विशेष को लाभ पहुंचा सकते है लेकिन Aachar sanhita मंत्रियों के लिए भी कुछ नियम बनाती है जिसके अनुसार मंत्री तथा सरकारी पदों पर आसीन अधिकारी सरकारी दौरे के दौरान चुनाव प्रचार नहीं कर सकते। मीटिंग ग्राउंड, सरकारी बंगले, सरकारी गेस्ट हाउस इन सभी पर किसी एक पार्टी का प्रभुत्व नहीं होगा बल्कि इनका प्रयोग सभी पार्टियां समान रूप से कर सकेंगी, इस प्रकार सरकारी संपत्ति किसी की निजी संपत्ति नहीं बनेगी।

देश का पैसा व देश की शांति की हानि न हो

हम सभी सरकार को कुछ टैक्स देते है जिस टैक्स का प्रयोग हमारे लिए सुविधाएं बनाने के लिए ही किया जाता है इसीलिए आदर्श आचार संहिता इस सरकारी पैसे का प्रयोग गलत कार्यों में करने से रोकती है और नियम बनाती है कि सरकारी पैसे का प्रयोग चुनाव  प्रचार के विज्ञापनों के लिए नहीं किया जाएगा और चुनाव प्रचार के दौरान निजी जीवन का उल्लेख करना तथा किसी तकनीक से सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने पर भी प्रतिबंध है।

चुनावी गतिविधियों में शिष्टाचार की भूमिका

जुलूस निकालने, बैठक करने के लिए भी निश्चित दिशा निर्देश होते हैं। यदि कोई सरकारी अधिकारी किसी पार्टी का पक्ष लेता है तो उस पर भी कार्यवाही की जाती है।

चुनाव प्रचार करने तथा रेलियाँ निकालने के दौरान भी कुछ निश्चित शिष्टाचार बनाए रखने के लिए कुछ नियमों का वर्णन किया गया है। रैली निकालने, बैठक करने, जुलूस निकालने से  पूर्व चुनाव आयोग की अनुमति लेना आवश्यक है और इसकी जानकारी नजदीक के थाने को भी देनी होगी।

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एक ऐतिहासिक फैसले की भूमिका

 आचार संहिता का एक नियम यह भी कहता है कि किसी भी राज्य विधानसभा में जब समय से पूर्व विधानसभा का विघटन हो जाता है तो जो कामचलाऊ सरकार बनती है  वह कोई नई योजना लागू नहीं कर सकती उसका काम सिर्फ आम जिम्मेदारियां उठाना है न कि नए फैसले लेना।

चुनाव आयोग को यह अधिकार तब मिला जब 1994 में सर्वोच्च न्यायालय ने  एस.आर. बोम्मई मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया कि कामचलाऊ सरकार रोजाना के काम करेगी कोई भी नए फैसले नहीं लेगी।

इन सभी दिशा निर्देशों का उद्देश्य सभी राजनीतिक पार्टियों को समान अवसर देना और चुनाव को शांतिपूर्वक व स्वतंत्र रूप से पूर्ण कराना है।यह नियम न केवल अन्य पार्टियों पर लागू होते है बल्कि सत्ताधारी पार्टी को भी अन्य पार्टियों की तरह ही चुनाव में भागीदारी करने का हकदार बनाते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण

स्वतंत्र व सर्वोच्च होने के कारण हम सभी सर्वोच्च न्यायालय पर सर्वाधिक विश्वास करते हैं। इसीलिए जब सर्वोच्च न्यायालय ने भी 2001 में अपने एक फैसले के दौरान आदर्श आचार संहिता को मंजूरी दे दी तो यह और भी ज्यादा पालन करने योग्य बन गई। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कहा गया कि चुनाव का ऐलान होते ही आचार संहिता लागू हो जाएगी।

इस फैसले के बाद adarsh aachar sanhita कब से लागू होगी इसका जवाब मिल गया और आचार संहिता के लागू होने की तारीख से जुड़ा विवाद भी हमेशा के लिए खत्म हो गया। जैसे ही चुनाव अधिसूचना जारी होती है तो उस इलाके में जहां चुनाव होना होता है वहाँ  आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है।

तकनीकी होता चुनाव आयोग

आचार संहिता के लागू होने के बाद चुनाव के समय कई सकारात्मक परिवर्तन आए हैं परंतु चुनाव आयोग ने अपनी इस जिम्मेदारी को और भी बेहतर रूप से पूरा करने के लिए कई अन्य तरीके भी अपनाए हैं जिसमें उन्होंने नई तकनीक का भी प्रयोग किया है और इसी का परिणाम है कि उन्होंने cVIGIL नामक एक ऐप  बनाया गया।

यह ऐप आम जनता के बीच आसानी से उपलब्ध है और किसी भी जगह आचार संहिता का उल्लंघन होने पर उसकी जानकारी इस ऐप के जरिए चुनाव आयोग तक पहुंचाई जा सकती है।

उल्लंघन के दृश्य वाली तस्वीर या 2 मिनट का एक वीडियो रिकॉर्ड कर के अपलोड किया जाता है यदि शिकायत सही पाई जाती है तो तुरंत कार्यवाही की जाती है और ऐसा करते वक्त शिकायतकर्ता को भी पूर्ण सुरक्षा दी जाती है क्योंकि उसके लिए एक यूनीक आईडी दी जाती है।

परंतु हम सभी जानते हैं कि किसी भी वस्तु के सिर्फ फायदे नहीं होते उसके नुकसान भी हमेशा उसका पीछा करते रहते हैं इसी प्रकार इस ऐप में भी कई कमियां पाई गई हैं जैसे कि शिकायतकर्ता को वीडियो या तस्वीर अपलोड करने के लिए मात्र 5 मिनट का समय दिया जाता है और पहले से ली गई तस्वीर या वीडियो को अपलोड नहीं किया जा सकता। अब 5 मिनट के भीतर यह काम करना बेहद मुश्किल है।

 मात्र CVIGIL एप नहीं बल्कि चुनाव आयोग ने कई अन्य तकनीक भी अपनाई हैं जिसमें शामिल है सुगम,इंटीग्रेटेड कॉन्टैक्ट सेंटर, सुविधा, इलेक्शन मॉनिटरिंग डैशबोर्ड,नेशनल कंप्लेंट सर्विस और वन वे इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलट इत्यादि। जिसके तहत वह चुनावों के दौरान आने वाली समस्याओं से निपटने की कोशिश करता है।

कहाँ पहुँचा चुनाव का त्योहार?

इस प्रकार हम यह जान पाए कि चुनाव आयोग ने आदर्श आचार संहिता का निर्माण कर काफी हद तक चुनावी त्योहार को शांतिपूर्वक व स्वतंत्रतापूर्वक कराने में कामयाबी हासिल की है परंतु जहां उन कानूनों का भी धड़ल्ले से उल्लंघन होता है जिन की सजा बेहद खतरनाक होती है तो यह आचार संहिता जो कि कानूनी नहीं है, जिस के उल्लंघन पर छोटी मोटी  सजा  का प्रावधान  है तो फिर इसका उल्लंघन होना तो कोई बड़ी बात नहीं है इसीलिए हम कई बार इस आचार संहिता का उल्लंघन होता हुआ देखते हैं। हालांकि चुनाव आयोग कई अन्य तरीके अपनाकर लगातार भारतीय लोकतंत्र को निखारने का प्रयास करता रहता है परंतु फिर भी कहीं ना कहीं चूक रह ही जाती है।

एक बेहतर विकल्प की आशा

वैसे चुनाव के दौरान होने वाले बेतहाशा खर्चे व समय की बर्बादी और सरकारी कामकाज का लंबे समय तक के  लिए ठप्प होना। इस सबसे बचने के लिए कई बार एक देश एक चुनाव की बात की गई और यह कहा गया कि पूरे देश में चुनाव एक ही समय में करा दिया जाए जिससे समय व संसाधन दोनों की बचत होगी। यह विषय मात्र अभी चर्चा में ही है इसे व्यावहारिक रूप में आने में अभी समय लगेगा और इसमें भी संदेह है कि यह सफल होगा भी कि नहीं? तब तक हमें प्रचलित चुनावी नियमों के अंतर्गत ही चुनावी व्यवस्था को जीवित रखना है।

जनता से है जनतंत्र

हम सभी जानते हैं कि  हर  चुनाव के बाद देश का लोकतंत्र और अधिक निखर कर सामने आता है। इसमें चुनाव आयोग ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है परंतु चुनाव आयोग द्वारा भले ही कई सुधार किए गए हैं लेकिन अभी भी चुनाव प्रचार में आचार संहिता के नियमों का उल्लंघन होता हुआ देखना कई बार संभव हो जाता है। बढ़ते तकनीकी युग में सोशल मीडिया भी कई बार जनता को प्रभावित करती है और सोशल मीडिया को आचार संहिता में सम्मिलित भी नहीं किया गया है।

जिसका दुष्परिणाम हम व्हाट्सएप आदि ऐप पर चुनाव के दौरान वायरल होती हुई कई तस्वीरें व वीडियो देख सकते हैं। इस सब से यह निष्कर्ष निकलता है की मात्र एक आयोग या आचार संहिता जैसे कुछ दिशा निर्देश महत्वपूर्ण भूमिका तो निभा सकते हैं परंतु पूरे देश की जिम्मेदारी नहीं ले सकते इसके लिए जनता का शिक्षित होना, उसका जागरूक होना बहुत आवश्यक है। जनता को भी देश की जिम्मेदारी उठानी होगी क्योंकि आखिर जनता से ही तो जनतंत्र है।

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