The kashmir file movie चर्चा में क्यों थी?

विवेक अग्निहोत्री जिन्होंने इतिहास के पुराने पन्नों को फिर से कुरेदा और एक ऐसी कहानी प्रस्तुत की The kashmir file movie जिसके बारे में हम सब वाकई  बहुत कम जानते हैं। बचपन से आज तक हमने कई बार किताबों में अधिकारों के बारे में पढ़ा है, कर्तव्यों के बारे में पढ़ा है, एकता, अखंडता, भाईचारे के बारे में पढ़ा है, परंतु जो भी हम किताबों में पढ़ते हैं जब हम वास्तविकता से वाकिफ होते हैं तब हमें यह एहसास होता है कि किताबी ज्ञान जमीनी हकीकत से बहुत दूर है।

जमीनी हकीकत की कहानी तो किताबों से गायब ही हैं। न जाने ऐसी कितनी घटनाएं हैं जो हमारे कानों तक पहुंचती भी नहीं है। कई बार वे राजनीतिक दबदबे के भीतर दम तोड़ देती हैं तो कई बार न्याय की गुहार लगाते लगाते थककर बैठ जातीं हैं, परंतु एक अच्छा पाठक और एक अच्छा लेखक वह होता है जो किताबों से गायब  हुए किस्सों को पढ़ना चाहता है, जो मौन को सुनना चाहता है और जो दर्ज़ न हुई घटनाओं को दर्ज़ करना चाहता है। ऐसी ही एक घटना को सामने लेकर आते हैं।

The kashmir file movie

1990 के दशक में कश्मीर से हुए हजारों पंडितों का पलायन हमने कई बार सुना है परंतु इसके पीछे की वजह  और वास्तविक कहानियां शायद हम नहीं सुन पाए हैं इसलिए ऐसी घटना को दुनिया को दिखाना जरूरी था।

The kashmir file movie क्यों चर्चा में है?

घाटी की घटना

विश्व में हम लगातार ऐसी घटनाएं देते रहते हैं जहां पर एक वर्ग दूसरे वर्ग पर अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश करता है और वह उस निचले वर्ग को जरूरी संसाधनों से भी वंचित कर देता है। कई बार यह भेदभाव इतना बढ़ जाता है कि न केवल लोगों से उनका घर परिवार छूट जाता है बल्कि लोगों की जान भी चली जाती है।

ऐसा ही एक घटना 1990 के दशक में कश्मीर घाटी में घाटी, जहां पर मुसलमान वर्ग ने अपना प्रभुत्व जमाने के लिए कश्मीर घाटी में रहने वाले ब्राह्मणों को वहां से बाहर निकालने की रणनीति अपनाई। वे न केवल ब्राह्मणों को कश्मीर से बाहर निकालना चाहते थे बल्कि कश्मीर को भारत से अलग भी करना चाहते थे और इसे ही अपनी स्वतंत्रता मानते थे इसलिए वहाँ लगातार कई सालों तक स्वतंत्रता – स्वतंत्रता के नारे लगाए गए। वृद्धजनों से लेकर बच्चों तक को स्वतंत्रता का यह घिनौना पाठ पढ़ाया गया जहां भारत को एक शत्रु के रूप में देखा गया और यह माना गया कि भारत ने जबरन कश्मीर पर अपना नियंत्रण कर रखा है।

कश्मीर पर सियासत

कश्मीर का मुद्दा भारत के इतिहास में हमेशा सांस लेता रहा है। कश्मीर में होने वाली निरंतर हिंसा की वारदातें हमें एहसास दिलाती रहती हैं कि कश्मीर अभी भी सुलग रहा है। 1947 में जब ब्रिटिशों ने भारत को आजाद किया तो भारत ने खुद को कई चुनौतियों से गिरा हुआ पाया। यह चुनौतियां न केवल भारत की जनता का पेट भरने की थी बल्कि उनके तन पर कपड़ा डालना और छत मुहैया करवाने की भी थी। परंतु इस सब में सबसे बढ़कर थी एकता की चुनौती क्योंकि जब तक किसी देश में एकता स्थापित नहीं होती है तब तक वहां पर सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व्यवस्था लागू करना लगभग असंभव प्रतीत होता है। भारत की एकता को बनाए रखने के लिए कई नेताओं ने अथक प्रयास किए जिसमें सबसे महत्वपूर्ण नाम सरदार वल्लभभाई पटेल का आता है। ऐसी कई देशी रियासतें थी जो भारत में शामिल होने के लिए आनाकानी कर रही थी। उसी में से एक रियासत जम्मू-कश्मीर की भी थी इसलिए  जम्मू कश्मीर को भारत में शामिल करने के लिए उसे कुछ विशेष प्रावधान दिए गए जो अनुच्छेद 370 में शामिल थे हालांकि यह अनुच्छेद 370 अब हटा दिया गया है परंतु फिर भी इस पर सियासत होती रहती है।

जन्नत से जहन्नुम तक का सफर

जम्मू कश्मीर का इतिहास सुनहरा इतिहास है। इसकी भौगोलिक संरचना इसे जन्नत बनाती है और यहां पर कई धर्मों का मिश्रण पाया जाता था। ऋषि कश्यप जैसे महान संतों ने यहां की घाटियों में तपस्या की और कश्मीर विद्या, संस्कृति का अद्भुत केंद्र बनकर उभरा। परंतु आज की घटनाओं को देखते हुए यह विश्वास करना मुश्किल लगता है कि वाकई कश्मीर इतना खूबसूरत था? 

कश्मीर को स्वर्ग से नर्क बनाने तक का सफर बेहद घिनौना रहा। यहां धर्म के आधार पर हर दिन हजारों लोगों को मौत के घाट उतारा गया, लोगों को खाने पीने तक की सुविधाएं नहीं दी गयीं।

न्याय की अधीनता

विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्मित फिल्म द कश्मीर फाइल्स केवल हमें कश्मीर के इतिहास से अवगत नहीं कराती है बल्कि राजनीति, धर्म का एक नकारात्मक पहलू भी दिखाती है। जहां नेताओं का फर्ज जनता की सुरक्षा करना है वही यह नेता रक्षक से भक्षक बन जाते हैं और पुलिस व्यवस्था या न्याय व्यवस्था जो हमेशा स्वतंत्र होनी चाहिए इन नेताओं के चंगुल में फंस जाती है और खुद को बहुत असहाय महसूस करती हैं, कठपुतली की तरह नेताओं की बातों को मानने लगती है और एक नेता की दूसरे नेता से दोस्ती, जनता को अक्सर एक दूसरे का शत्रु बना देती है।

धर्म का दुरुपयोग

धर्म जो हमें सद्भाव सिखाता है। धर्म जो हमें अहिंसा सिखाता है। धर्म जो हमें प्रेम सिखाता है। भाईचारा सिखाता है, सहानुभूति, मानवीयता सिखाता है। प्रश्न उठता है कि क्या यही हमें मारकाट सिखा सकता है? नफरत सिखा सकता है? अलगाव की भावना सिखा सकता है? और क्या यही धर्म हमें मानव से पशु बनाना सिखा सकता है? अक्सर यह समस्याएं हम अपने देश में देखते रहे हैं कि धर्म के नाम पर हजारों लोगों की बलि चढ़ाई जाती है, उनसे उनका घर, परिवार सब कुछ छीना जाता है। अक्सर ऐसा धर्म वास्तविक में है ही नहीं। यह धर्म तो लोगों ने अपनी शक्ति को, अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने अनुसार तोड़ मरोड़ लिया है और वे एक ऐसी दौड़ में आगे बढ़ने लगते हैं जहां वह दुनिया को नर्क बना देते हैं।

अधिकारों की हकीकत

द कश्मीर फाइल्स हमें धर्म का घिनौना रूप दिखाती है और भारत के केंद्रीय मूल्यों को भी टूटता हुआ दिखाती है। भारतीय संविधान में वर्णित 6 मौलिक अधिकार जो कि स्वतंत्रता, समानता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार प्रदान करते हैं इस फिल्म में उन सभी अधिकारों को आग में भेंट कर दिया गया है। जहां एक व्यक्ति की जान बचाने के लिए या कहें कि एक आतंकवादी की जान बचाने के लिए दूसरे व्यक्ति की जान ले ली जाती है। जहां डॉक्टर इलाज न करने के लिए बांध दिया जाता है। जहां राशन के दुकानदार केवल एक वर्ग को ही राशन दे सकते हैं। जहां मीडिया आतंकवादियों की रखैल कही जाती है जहां खामोश रहने के लिए पद्मश्री प्रदान किया जाता है। जहां सच्चाई दिखाने के लिए पत्रकारों को मार दिया जाता है। ऐसे ही हालात थे कश्मीर में। अब इन हालातों से बचने के लिए  कश्मीरी पंडित पलायन न करते तो क्या करते हैं? परंतु जिंदगी के अंतिम पल तक वह अपने घर वापस जाने के सपने देखते रहे और मरते दम भी यही कह कर गए कि उनकी अस्थियों को कश्मीर में उनके घर में बहा देना।

नेता सिर्फ नेता होता है

यह फिल्म हमें यह भी बताती है कि एक नेता आम जनता की समस्याएं समझने में अक्सर नाकाम होते हैं। शरणार्थी शिविरों में रहने वाले व्यक्ति जो सांप और बिच्छू के बीच में रह रहे थे। जहां महिलाएं हर दिन अपने खराब स्वास्थ्य से जूझ रही थी। जहां हर दिन नई बीमारी फैल रही थी, वहीं नेता का यह बयान कि ये सब तो प्राकृतिक है और गर्मी के कारण मृत्यु होना कोई बड़ी बात नहीं है तब हम ये समझ पाते हैं कि नेता सिर्फ एक नेता होता है और उसके लिए सिर्फ उसका हित महत्वपूर्ण होता है।

शिक्षा व्यवस्था की खामियां

ऐसी हालात में आवाज उठाना बहुत ही मुश्किल काम है परंतु फिर भी लोग छुपे तौर पर कई चिट्टियां, कई पत्र लिखते रहे लेकिन उन पत्रों का कोई जवाब नहीं आया और वे लोग बरसों तक अपने घर से दूर रहे इस इंतजार में कि एक दिन वह घर वापस जरूर जाएंगे जो कि शायद आज तक संभव नहीं हो पाया है। यह फिल्म हमें यह भी बताती हैं कि किस तरीके से हम किसी भी व्यक्ति के दिमाग में गलत को सच बनाकर भर सकते हैं। Bकैसे उसे उसके रास्ते से हटा सकते हैं और इसमें महत्वपूर्ण भूमिका शिक्षा व्यवस्था निभाती हैं। शिक्षा व्यवस्था चाहे तो हमें सच्चाई से वाकिफ करा सकती है और चाहे तो सदा सदा के लिए हमें झूठ को सच कहने वाला जिद्दी भी बना सकती है। ऐसी शिक्षा व्यवस्था किसी काम की नहीं जो गलत को सही कहे। फिल्म में यही भूमिका राधिका मेनन के नाम से सामने आती है जो एक अध्यापिका है और एक अलग ही तरह की व्याख्या प्रदान करती हैं जो सच्चाई से बहुत दूर है।

इस फिल्म के द्वारा हम यह भी जान पाते हैं कि अधिकार अभी भी संविधान तक ही सीमित हैं स्वतंत्रता अभी भी अनुच्छेद 19 से लेकर 22 तक ही सीमित है। वह वास्तविक जीवन से बहुत दूर है। फिल्म का अंतिम दृश्य दिल को झकझोर देने वाला है जहां विश्वास खौफ में तब्दील होता है, जहां रक्षक भक्षक में तब्दील होते हैं और जहां जीवन मौत में तब्दील होता है।

अमानवीय अधर्म है।

वह कोई भी व्यक्ति जो अमानवीय बर्ताव करता है फिर चाहे वह धर्म, जाति, रंग से कुछ भी हो वह गलत ही कहलाया जाना चाहिए और एक अच्छे इतिहासकार को अपनी भूमिका निष्पक्ष होकर निभानी चाहिए। वे अनकहे किस्से सबके सामने लाए जाने चाहिए जो न जाने कब से इतिहास में खो चुके हैं। कश्मीर घाटी की यह घटना हमें यह सोचने पर भी मजबूर करती है कि न जाने ऐसी कितनी ही घटनाएं हैं जो अभी भी इतिहास में दर्ज नहीं हुई है। जिन्हें अभी भी किताबों के पन्नों में जगह नहीं मिली है।

हम भले ही हिंदू हैं, मुस्लिम हैं, सिख हैं या ईसाई हैं। हम भले ही भारतीय हैं, पाकिस्तानी हैं या अमेरिकी हैं। हम सामाजिक ढांचे में भी अलग अलग भूमिका पर हो सकते हैं परंतु इस सबसे पहले हम एक मानव है और सबसे बड़ा धर्म मानवीयता है।

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