Russia ukraine war in hindi 2022, reason, consequences

वैश्वीकरण का यह दौर बताता है कि आज विश्व  का कोना कोना इस तरीके से एक दूसरे से जुड़ चुका है कि किसी एक कोने में उठापटक होने पर उसका असर पूरे विश्व में देखा जा सकता है फिर चाहे ये उठापटक सकारात्मक हो या नकारात्मक।

कोई भी देश पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर नहीं होता और वह अपनी जरूरतों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहता है। इस कारण यदि किसी एक देश में आर्थिक या राजनीतिक समस्या उत्पन्न होती है तो पूरे विश्व का आदान-प्रदान प्रभावित होता है। जैसा की वर्तमान स्थिति में देखने को मिल रहा है। Russia ukraine war in hindi.

वर्तमान में नई चुनौती का उदय

दुनिया अभी कोविड-19 के सदमे से उभर ही रही थी। लोगों ने फिर से काम पर जाना शुरू किया था और पिछले दो-तीन सालों में हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए प्रयास करने शुरू कर दिए थे। तभी अचानक उसके सामने एक नई चुनौती आ खड़ी हुई है। यह चुनौती भी लोगों के लिए कई समस्याएं उत्पन्न कर रही है।

निरंतर शक्तिमान होने का प्रयास

हर व्यक्ति, हर समूह या कहे कि हर देश निरंतर शक्तिमान होने का प्रयास करता रहता है। सभी को शक्ति बहुत प्रिय होती हैं और वह चाहता है कि दूसरे भी उसकी शक्ति को माने और उसकी आज्ञा का पालन करें परंतु जैसे ही यह शक्ति डगमगाने लगती है या फिर कोई दूसरी शक्ति आगे निकल जाती है तो सुरक्षा का खतरा उत्पन्न होता है।

सोवियत संघ का पतन

1947 से 1989 तक विश्व में युद्ध के हालात बने रहे हालांकि इसे तृतीय विश्वयुद्ध की संज्ञा नहीं दी गई क्योंकि यह शीत युद्ध था। एक तरफ संयुक्त राज्य अमेरिका और दूसरी तरफ सोवियत संघ ने पूरे विश्व को दो गुटों में विभाजित कर दिया था। यह पश्चिमी और पूर्वी गुट कहलाये गए थे।

इस बीच कई देशों में हिंसक घटनाएं भी हुई जिसमें वियतनाम एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। 1991 में शीत युद्ध की समाप्ति का परिणाम यह हुआ कि विश्व में एक ही महाशक्ति बची है और वह महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका है। इस प्रकार विश्व द्विध्रुवीय से एकध्रुवीय हो गया और सोवियत संघ टूट कर बिखर गया।

(Ukraine और Russia के युद्ध का कारण) Russia ukraine war in hindi

सोवियत संघ का स्थान रूस ने लिया परंतु रूस आज की बहुत शक्तिशाली होने के बावजूद भी अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित रहता है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पूर्व सोवियत संघ गणराज्य की शक्ति को पुनर्जीवित करना चाहते हैं।

रूस यूक्रेन संघर्ष इसी सुरक्षा समस्या का परिणाम है। 1991 में यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ और उसने एक स्वतंत्र देश का रुख अपनाया परंतु क्योंकि वह लंबे समय तक सोवियत संघ से जुड़ा हुआ था तो सोवियत संघ उसे निरंतर अपनी तरफ बनाए रखने के लिए ही प्रयासरत था। इस प्रकार यह संघर्ष पश्चिमी और पूर्वी देशों के बीच का संघर्ष बन चुका है। 

रूस द्वारा सुरक्षा की चिंता

शीत युद्ध के दौरान विश्व में दो महत्वपूर्ण  गठबंधन बने थे। संयुक्त राज्य अमेरिका का था NATO गठबंधन और सोवियत संघ का वारसा गठबंधन। आज वारसा अस्तित्व में नहीं है परंतु नाटो आज की एक शक्तिशाली समूह है। NATO (उत्तरी अटलाण्टिक सन्धि संगठन एक सैन्य गठबन्धन) है, जिसकी स्थापना 4 अप्रैल 1949 को हुई।

इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में है। अपनी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए यूक्रेन भी इस पश्चिमी संगठन नाटो का हिस्सा बनना चाहता है परंतु यही वह वजह है जिसके कारण रूस को लग रहा है कि अब उसकी शांति खतरे में है क्योंकि यदि यूक्रेन नाटो का सदस्य बन गया तो रूस की सीमा के निकट ही कई परमाणु परीक्षण होंगे मिसाइल टेस्ट होंगी जिसके कारण रूस की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। 

यह वर्तमान संघर्ष की स्थिति कोई नई नहीं है बल्कि 2014 में भी रूस के द्वारा क्रीमिया पर अवैध अधिकार  किया गया तभी से यूक्रेन निरंतर भय की स्थिति में जी रहा है।

क्या यह तीसरा विश्व युद्ध है?

26 फरवरी से तैनात होने लगी मिसाइलें और निरंतर अस्त्र परीक्षण ने पूरे विश्व को इस संशय में डाल दिया कि क्या यह तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत है? इस स्थिति को शीत युद्ध तो नहीं कह सकते क्योंकि यहां प्रतिदिन कई लोगों की जान जा रही है और संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया जा रहा है। 

यूक्रेन अपने स्वतंत्र आतित्व व संप्रभुता को बनाए रखना चाहता है और इसीलिए वह अपने  बचाव के लिए प्रयास कर रहा है। यूक्रेन राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की भी सैन्य वर्दी में इस युद्ध भूमि में खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं। 

Ukrain or Russia के युद्ध में भारत के स्थिति

विश्व के अन्य देश अपने अपने तर्क देते हैं। कुछ देश रूस का समर्थन कर रहे हैं तो कुछ अमेरिका का परंतु भारत इस स्थिति में तटस्थ खड़ा हुआ है क्योंकि वह अभी भी गुटनिरपेक्ष आंदोलन का समर्थन करता हुआ प्रतीत हो रहा है। इस गुट निरपेक्ष आंदोलन का निर्माण शीत युद्ध के दौरान ही हुआ था।

जिसमें भारत के साथ अन्य चार देशों ने यह निर्णय लिया था कि वे संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ में से किसी के साथ शामिल नहीं होंगे और अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखेंगे परंतु भारत वार्तालाप के द्वारा शांति कायम करने के पक्ष में है। परंतु संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठकों में भारत द्वारा मतदान न करना एक तरफ तो गुटनिरपेक्षता को दर्शा रहा है और दूसरी तरफ रूस का समर्थक भी प्रतीत हो रहा है।

संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधारों की मांग

वर्तमान स्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ के अस्तित्व को भी चुनौती दी है। क्या वह शांति कायम करने में असमर्थ है? क्या वह अमेरिका का  प्रतिनिधित्व कर रहा है? ऐसे ही कई सवाल आज दुनिया भर में उठ रहे हैं। परंतु एक बात बिल्कुल स्पष्ट दिखाई पड़ती है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार की बहुत जरूरत है क्योंकि 5 देशों को वीटो का अधिकार देना और स्थाई सदस्यता अभी भी सीमित रखना यह दर्शाता है की संयुक्त राष्ट्र संघ समय के अनुसार बदला नहीं है।

आज विश्व में कई अन्य शक्तियां है जो संयुक्त राष्ट्र संघ में भागीदारी करने की क्षमता और योग्यता रखती हैं। वर्तमान स्थिति से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में भी निरंतर बैठकें हो रहीं हैं। परंतु यदि वर्तमान स्थिति तीसरा विश्वयुद्ध का रूप ले लेती है तो यह निश्चित रूप से संयुक्त राष्ट्र संघ की कमजोरी और उसकी अप्रासंगिकता को दर्शाता है।

नाटो का बढ़ता प्रभाव

जहां यूक्रेन के  कुछ लोग रूस के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं वहीं रूस के कई लोग अपने देश की इस गलत कार्यवाही को अवैध बताते हुए लगातार विरोध कर रहे हैं। अमेरिका का मानना है कि यूक्रेन एक स्वतंत्र और संप्रभु देश है और यदि वह चाहता है कि वह नाटो का सदस्य बने तो इसके लिए वह पूर्ण रुप से आजाद है परंतु यूक्रेन पश्चिमी और पूर्वी देशों के बीच में एक बफर राज्य की तरह है यदि यह नाटो में शामिल हो जाएगा तो अमेरिका व नाटो का प्रभाव रूस के बेहद नजदीक आ जाएगा।

विश्व पर संघर्ष का प्रभाव

रूस और यूक्रेन संघर्ष पूरे विश्व को प्रभावित कर रहा है। यदि हम भारत पर इसके प्रभाव को देखें तो पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel), नेचुरल गैस (Natural Gas), एडिबल ऑयल (Edible Oil) और गेहूं (Wheat) महंगा हो सकता है। यूक्रेन और भारत के बीच तकरीबन 3 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है।जहां कोरोना के कारण लोग अभी भी परेशान थे। इन समस्याओं के कारण उनकी चिंता और बढ़ गयी

भारतीय छात्रों की वापसी

भारत का एक अन्य मुद्दा यूक्रेन में भारतीय छात्रों का होना है। भारत के कई छात्र यूक्रेन में शिक्षा के लिए रहते थे। अचानक ही इस संघर्ष के कारण उन छात्रों को भारत  लाना एक बड़ी समस्या बन गई है परंतु कई छात्र भारत लौट चुके हैं और अन्य बचे हुए छात्रों को भारत लाने के लिए भी सरकार निरंतर काम कर रही है और सरकार यह भी कोशिश कर रही है कि अब भारतीय छात्र मेडिकल क्षेत्र में पढ़ाई के लिए भारत में रहकर ही अपना अध्ययन पूरा कर पाए और उन्हें दूसरे देशों में जाकर शरण लेने की जरूरत ना पड़े।

हथियारों की होड़

यूक्रेन में निरंतर कई लोगों की जानें जा रही हैं। अखबारों, मीडिया, टेलीविजन पर कई मार्मिक दृश्य देखने को मिल रहे हैं। कई लोग बेघर हो गए हैं और कई बच्चे अनाथ। यह संघर्ष की स्थिति मानवता पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती हुई दिखाई दे रही है।

युद्ध की इस स्थिति में प्राइवेट कंपनियों को अधिक मुनाफा होता है क्योंकि भले ही वे युद्ध का आरंभ नहीं करती है परंतु वे चाहती हैं कि युद्ध निरंतर चलता रहे ताकि उन्हें अधिक हथियार बनाने और बेचने का अवसर मिले। युद्ध की स्थिति उत्पन्न होते ही प्रत्येक देश हथियारों को इकट्ठा करने में लग जाता है और हथियारों की होड़ सातवें आसमान पर पहुंच जाती है।

आत्मनिर्भरता का पाठ

रूस यूक्रेन की वर्तमान स्थिति संपूर्ण विश्व को आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाती है। यदि कोई देश स्वयं की जरूरतों को पूरा करने में असफल होता है तो संघर्ष की स्थिति में कोई अन्य देश उसकी सहायता करने की बजाय अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता देता है। ऐसे में वह देश अलग थलग पड़ जाता है।

भयानक विध्वंस से बचने का प्रयास

वर्तमान परिदृश्य में सबसे महत्वपूर्ण है शांति का प्रयास करना ताकि लोगों की जान बचाई जा सके और यह संघर्ष एक भयानक विश्वयुद्ध का रूप न ले सके क्योंकि यदि यह संघर्ष यूं ही निरंतर चलता रहा तो सबको इससे हानि होगी जैसा कि हम प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में देख चुके हैं। और किसी भी समस्या का समाधान युद्ध नहीं हो सकता क्योंकि साहिर लुधियानवी ने बहुत ही खूबसूरती से लिखा है कि;

“जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है

जंग क्या मसअलों का हल देगी”

इसलिए वर्तमान समस्या का समाधान शांतिपूर्ण वार्तालाप है क्योंकि एक दूसरे का सर कलम करने से बेहतर है कि एक दूसरे का सिर खाया जाए।

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