बाल विवाह किसे कहते है, निबंध, दोष, लाभ | bal vivah kya hai

हिंदू विवाह एक धार्मिक संस्कार है इसमें अनेक अनुष्ठान करने पड़ते हैं इसमें कन्यादान होता है तथा गृहस्थ आश्रम का पालन कर वर तथा वधू जन्म जन्मांतर का अटूट बंधन मानकर विधि विधान सहित अग्नि को साक्षी मानकर वंश वृद्धि तथा रन से मुक्ति के लिए विवाह के बंधन में बंध जाते हैं पुरुष और स्त्री का एक यूनिक संबंध मात्र ना होकर एक धार्मिक संस्कार है।

बाल विवाह का अर्थ bal vivah kya hai

बाल विवाह का तात्पर्य विवाह से है जबकि वर और कन्या दोनों ही बाल्यावस्था के होते हैं बाल्यावस्था किशोर अवस्था से पहले की अवस्था होती है अर्थात 6 साल से 13 या 14 वर्ष तक की आयु वाली अवस्था को बाल्यावस्था कहा जाता है इस आयु में बालक बालिकाएं पूरी तरह ना समझ होते हैं और उनमें विवाह के उत्तरदायित्व को निभाने की क्षमता नहीं होती यहां तक कि वे विवाह के अर्थ तक को नहीं समझते और विवाह उनके लिए एक उत्सव मात्र होता है आज क्योंकि लड़के तथा लड़की के लिए कानूनी रूप से विवाह की आयु 21 और 18 वर्ष निर्धारित है इसीलिए इसे कम आयु में विवाह करना बाल विवाह कहा जाता है।

vivah kya hai

बाल विवाह का दुष्प्रभाव

बाल विवाह भारत की बहुत पुरानी प्रथा है इसीलिए इसके दुष्प्रभाव के लिए अपने प्राचीन ग्रंथों के पन्ने पलटते हैं तो यह स्पष्ट होता है कि वैदिक युग में बाल विवाह की दृष्टि से स्वर्ण युग माना जाता है इस युग की आश्रम व्यवस्था इस बात का ठोस प्रमाण है जबकि गृहस्थ में प्रवेश करने की आयु 25 वर्ष मानी गई थी मनु ने भी बाल विवाह को निषिद्ध घोषित किया था।

लेकिन धीरे-धरे समय के साथ-साथ धर्म शास्त्रों के नियमों में बदलाव होते गए तथा धर्म शास्त्रियों ने लड़कियों की रजोधर्म से पूर्व विवाह पर जोर दिया ।हमारे धार्मिक ग्रंथ महाभारत और रामायण में भी इस धारणा को प्रोत्साहित किया तथा ईसा से 400 वर्ष पूर्व पहले ब्राह्मणों में तत्पश्चात अन्य जातियों में बाल विवाह का प्रचलन तीव्रता से हुआ मध्ययुग अर्थात मुसलमानों के भारत पर आक्रमण के बाद पुत्रियों की सुरक्षा की दृष्टि से संपूर्ण भारत में बाल विवाह को ही उचित माना गया और उसका कठोरता से पालन किया जाने लगा।

बाल विवाह के कारण

बाल विभाग के प्रचलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

धार्मिक विश्वास

हिंदू समाज का प्रत्येक पहले किसी ना किसी प्रकार धर्म से जुड़ा रहा विभा भी एक धार्मिक संस्कार है जिसमें कन्यादान का विधान है कन्यादान सभी प्रकार के दोनों से सर्वश्रेष्ठ है तथा इसका कोई लाभ माता-पिता को प्राप्त होता है दूसरा पत्नी पति को परमेश्वर मानती है जिसकी वजह से कन्या का विवाह जितना जल्दी कर दिया जाएगा इतना ही जल्दी पति व्रत धर्म पालन करने की गारंटी होगी।

दहेज प्रथा

जैसे-जसे बर की आयु बढ़ती जाती है वैसे वैसे वर का मूल्य बढ़ता जाता है इसी प्रकार दहेज से बचने के लिए भी बाल विवाह कर दिए जाते हैं

अंतर्विवाह

अंतर विवाह की प्रथा अंतरजातीय विवाह पर निषेध लगाती है इसी प्रकार विभाग करने अर्थात विभाग के लिए साथी के चुनाव का क्षेत्र संकीर्ण हो जाता है माता-पिता को कन्या के लिए बस ढूंढने में कठिनाई होती है पता जैसे ही करने के लिए कोई उपयुक्त मिल जाता है चाहे करना कम आयु की ही क्यों ना हो माता-पिता उसको विवाह कर देते हैं

कोमार्य भंग का भय

भारत में विवाह से पूर्व यौन संबंधों को अत्यधिक अनुचित माना जाता है यदि कोई लड़की ऐसा करती है तो उसका कोमार्य भंग माना जाता है और उससे कोई विवाह नहीं करता साथ ही इसमें परिवार की भी बदनामी होती है भारतीय माता-पिता इस कारण ही लड़की को जल्दी से जल्दी विवाह करने को तैयार रहते हैं क्योंकि उनको डर रहता है कि कहीं लड़की योगन अवस्था में विचलित होकर अपना कौमार्य भंग न कर दे।

कुलीन विवाह

इसकी भाव प्रथा के अनुसार माता-पिता अपनी कन्या का विवाह उच्चारण नहीं करना गौरव का विषय समझते हैं लेकिन उच्च कुल में लड़कों की संख्या कम होती है तथा माता-पिता अवसर मिलते ही अपनी कन्या का विवाह उच्च कुल में कर देते हैं।

स्त्रियों की निम्न स्थिति

प्राचीन काल से ही स्त्रियों की दशा अत्यंत दयनीय होती गई प्राचीन काल में सभी वर्गों में भाग लेने तथा पुरुष के समान अधिकार रखने वाली शास्त्रार्थ करने वाली नारी से उसके शिक्षा संबंधी स्वतंत्रता के अधिकार छीन लिए गए बचपन में पिता, बड़े होकर पति तथा वृद्धा अवस्था में पुत्रो का देखभाल करने बाला बना दिया गया उसे घर की चार दीवारों में वर पक्ष के लोगों की सेवा संतानों पत्ती तथा पति की दासी बना दिया गया।

विदेशी आक्रमण

मुस्लिम आक्रमणों में बाल विवाह को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया प्राय मुस्लिम सामंत सुंदर भारतीय कन्याओं से विवाह करने के उत्सुक रहते थे इस कार्य को बलपूर्वक करने में नहीं चूकते थे इसीलिए माता-पिता इस उलझन से बचने के लिए अपनी कन्या का विवाह कम आयु में ही कर देते थे यही कारण है कि प्राचीन काल में बाल भी विवाहों में अत्यधिक वृद्धि हो गई।

धर्मशास्त्र

अधिकांश हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार कम आयु में ही कन्या का विवाह कर देने का समर्थन किया गया माता-पिता अपनी कन्या का विवाह कम आयु में नहीं करते तो उन्हें पाप का भोगी कहा जाता था पुराणों में भी इस प्रकार का वर्णन मिलता है।

संयुक्त परिवार प्रणाली

भारतीय समाज में संयुक्त परिवारों की अधिकता थी संयुक्त परिवार में बूढ़े ही प्रत्येक निर्णय लेते हैं उनकी इच्छा होती है कि अपने जीते जी पोते पोते का भी विभाग देख लें यह प्रवृत्ति बाल विभाग उत्साहित करती है दूसरा कारण यह है कि संयुक्त परिवार में प्रत्येक को अलग से जीविकोपार्जन करना नहीं पड़ता पता बेरोजगार लड़कों का ही विवाह कर दिया जाता है।

बाल विवाह से लाभ

संसार में कोई स्थिति या वस्तु ऐसी नहीं है इसका केवल एक ही पहलू है इसी प्रकार बाल विवाह है कि भी दो पहलू हैं अर्थात इस से कुछ लाभ भी हैं तथा हानियां भी अता इन दोनों पहलुओं पर दृष्टिपात करने या उसकी वास्तविकता का पता चल सकता है।

बाल विवाह से होने वाले लाभ निम्न प्रकार हैं विवाहित अनुकूलन विभाग के द्वारा दो भिन्न-भिन्न प्रकृति के लड़की लड़के का जीवन के लिए गठबंधन हो जाता है अतः बचपन से साथ रहने के कारण दोनों को एक दूसरे से समायोजन करने में सुविधा होती है।

उनका बाल मन इतना अधिक कोमल व लचीला होता है कि दोनों अपने को बड़ी सरलता से एक दूसरे के अनुकूल बना लेते हैं दोनों का शारीरिक व मानसिक विकास साथ साथ होता है जिसके परिणाम स्वरूप दोनों के विचारों में सामंजस्य स्थापित हो जाता है।

संघर्ष की स्थिति की संभावना कम होती है उनका गृहस्थ जीवन सुख में व्यतीत होता है जबकि कम अवस्था में जबकि उन्हें व्यक्तित्व की भावना भर जाती है अपने को एक दूसरे की रूचि के अनुसार ढालने में कठिनाई होती है और कभी-कभी तो असंभव भी हो जाता है तथा उनके जीवन में लगातार इस प्रकार संघर्ष होते रहते हैं।

इनका जीवन एक अभिशाप बनकर रह जाता है बाल विवाह पति-पत्नी को इस स्थिति से निकालकर सुखी जीवन व्यतीत होने में सहायक होता है अनेकता से बचाव बाल विवाह हो जाने पर जब उनकी किशोरावस्था आरंभ होती है और उनकी कामेच्छा जागृत होती है उन्हें घर में ही अपनी इच्छा तृप्ति का सर प्राप्त हो जाता है उन्हें इधर-उधर भटकने की आवश्यकता नहीं होती जिससे भी अनैतिक कार्य करने से बच जाते हैं साथ ही उनके चरित्रहीन होने की संभावना भी कम हो जाती है।

बालकों को निसर्ग एक अधिकार प्रदान करना भोजन की भांति यौन इच्छा भी व्यक्ति की एक मौलिक आवश्यकता है जिस प्रकार किसी व्यक्ति को भूखा रखना पाप है उसी प्रकार उसकी योनि का जागृत होना स्वाभाविक है लेकिन देर में विवाह होने से उन्हें अपनी इच्छा का दमन करना पड़ता है किंतु बाल विवाह के द्वारा बालक बालिका को युवावस्था प्राप्त होते ही उसका सरल तथा स्वाभाविक रास्ता मिल जाता है।

जिसकी संतुष्टि से उसका जीवन सुखी रहता है अभिभावकों द्वारा वर्ग 2 का चुनाव बाल विवाह प्राचीन प्रथा है जबकि प्रेम विवाह आधुनिक प्रथा बाल विवाह में वर वधू के माता-पिता के द्वारा होता है सभी को संभालते हैंउनका मार्गदर्शन करते रहते हैं तथा उनके दुख के समय अथवा संघर्ष में जीवन की संभावना कम रहती हैलेकिन आधुनिक युग के प्रेम विभाग बस होने पर ही संभव होते हैं और लड़के लड़की के ऊपर निर्भर होते हैं यह अवस्था ऐसी अवस्था है।

जब बालक बालिका ने अपनी तोपों से प्रेरित होते हैं और अपना अच्छा बुरा बिना सोचे विवाह कर डालते हैं लेकिन जो कि क्षणिक वा स्थाई होते हैं जो शीघ्र समाप्त हो जाते हैं तथा उनकी उन पर हावी हो जाता है और मैं अपने काल्पनिक संसार से जाकर यह वास्तविक संसार में आते हैं तो अपने अपने गलत चुनाव को एक दूसरे को थोक मे जीवन भर या तो एक दूसरे के साथ संघर्ष में जीवन जीते हैं अथवा अलग-अलग रास्ता बना देते हैं जिसमें उनके माता-पिता का कोई काम नहीं आता।

इस दृष्टि से बाल विवाह कहीं अधिक सफल कहा जाता है बच्चों के दायित्वों से मुक्त होने से लोगों को संतान होने लगती है कम आयु में ही इतने बड़े हो जाते हैं कि माता पिता अपनी संतान के प्रति अपने सभी दायित्वों से मुक्त हो जाते हैं बड़ी अथवा परिपक्व आयु में बच्चे जब तक बड़े होते हैं माता-पिता दर्द हो जाते हैं कभी कभी तो संतान के दायित्व को पूरा किए बिना ही माता-पिता बंद हो जाते हैं बच्चों के सिर से माता पिता का साया उठ जाने से उनके सामने आने की समस्या हो जाती है और उनका भविष्य बिगड़जाता है।

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