आज हम पढ़ने बाले है की alankar in hindi अलंकार किसे कहते है अलंकार के भेद इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद आपको अलंकार से सम्बंधित कोई परेशानी नहीं आने बाली है।
जिस एग्जाम में हिंदी आती है उसमे अलंकार से सम्बंधित प्रश्न जरूर पूछे जाते है अलंकार के सारे भेद कम्पलीट करने बाले है।
alankar kise kahate hain
शाब्दिक अर्थ : आभूषण, शोभा, चमत्कार, सौंदर्य
अलंकार की परिभाषा : जंहा शब्द व अर्थ के कारण बिशेषता उत्पन्न की जाये।
अलंकार के तत्व/ अव्यव : 1. शब्द 2. अर्थ
प्रतिपादक : आचार्य भामह, मम्मट, विश्वनाथ
पुस्तक/ ग्रन्थ/ काव्य : काव्यालंकार, काव्यप्रकाश, साहित्य दर्पण
अलंकार के भेद
अलंकार के तीन भेद होते है।
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
- उभयालंकार
शब्दालंकार
जहाँ शब्द के कारण वाक्य या काव्य की सुंदरता में वृद्धि हो।
जैसे : महाराजा प्रताप वीर, साहसी पुरुष थे।
अर्थालंकार
जहाँ किसी काव्य या वाक्य की शोभा शव्द के अर्थ द्वारा बढ़ाई जाये।
जैसे : महाराणा प्रताप राजस्थान के शेर थे।
उभयालंकार
जहाँ शब्द व अर्थ दोनों के द्वारा चमत्कार उत्पन्न हो।
जैसे : मुझको राणा जी माफ़ करना गलती म्यारे से हो गई।
शब्दालंकार के भेद
अनुप्रास अलंकार
- आवृत्ति या पुनरावृत्ति
- जहाँ किसी वर्ण, शब्द, वाक्य की आवृत्ति हो या शब्द व वाक्य का अर्थ एक ही रहे।
जैसे :
चारु चंद्र की चंचल किरणे खेल रही ……
परदेशी – परदेशी जाना नहीं मुझे …….
रघुपति राघव राजा राम, पति पावन सीता राम।
रघुपति रगाव राजा राम, पति पवन सीता राम।।
अनुप्रास अलंकार भेद
छेकानुप्रास
जहाँ स्वरुप के क्रम के आधार पर अलग-अलग वर्ण की आवर्ती एक या अनेक बार होती है।
जैसे :-
- बागरे- बिगिन में भ्रमर- भरे अजब अनुराग
- ब= 2 बार
- भ= 2 बार
- अ= 2 बार
वृत्यनुप्रास
- जहाँ किसी एक ही वर्ण की आवृत्ति क्रमश होती है वहां वृत्यनुप्रास होता है।
- जहाँ वर्ग की आवृत्ति इस प्रकार हो कि वर्णो के द्वारा अर्धवृन्त या व्रत उच्चारण व् आकृति के आधार पर बन जाए।
जैसे :-
चारु चंद्र की चंचल किरणे खेल रही हैं जल थल में पके पेड़ पर पका पपीता।
लाटानुप्रास
- जहाँ शब्द वाक्यांश वाक्य की आवृत्ति होती है तथा हर बार एक ही अर्थ प्रकट होता हो।
- नोट- तात्पर्य व अन्वय अलग-अलग हो सकते हैं।
पूत कपूत क्यों धन संचय पूत कपूत क्यों धन संचय
परदेसी-परदेसी जाना नहीं
श्रत्यनुप्रास
- जहाँ किसी वर्ण के उच्चारण प्रयोग, या शब्द की संरचना के कारण मधुरता, मनोरमा उतपन्न हो जाए।
- जिसमे वर्ण की स्थिति के कारण सुनने में मधुरता या अच्छा लगता हो।
जैसे :-
लैला तुझे लूट लेगी तू लिख काट ले ले
चंदू के चाचा ने चंदू की चाची को चांदी की
अन्त्यानुप्रास
जहाँ पंक्ति, वाकया के अंत में समान मात्रा व वर्ण का प्रयोग किया जाए।
वाकय पंक्ति के अंतिम पद में सादृश्य ध्वनि वर्ण हो।
जैसे :-
लगा दी तूने कैसे यह आग
बताये कहा थे तू संशय के नाग
यमक अलंकार
- इसका अर्थ होता है – युग्मक या जोड़ा
- जहाँ दो शब्द युग्मक या जोड़ो के रूप में ए तथा शब्दों का अर्थ अलग अलग हो।
- जहाँ कोई शब्द सम संख्या 2, 4, 6… आवृत्ति करे और उसके अर्थ अलग अलग हो।
जैसे :
- जैसे नभ में तारे है तेते तुम तारे हो।
- काली घटा का घमंड घटा।
- कनक – कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाये।
- सजना है सजना के लिए।
श्लेष अलंकार
- जहाँ कोई शब्द बार बार वाक्य, पंक्ति,कथन के साथ पुनरावृत्ति करता हो तथा हर बार उसका अर्थ अलग हो।
- जहाँ कोई शब्द एक, तीन, पांच, बिषम संख्ये में आवृत्ति करे तथा उसका अर्थ अलग अलग हो।
जैसे :
मोहब्बत बरसा देना तू सावन आया है।
सुबरन को ढुढत फिरत कवि व्यभिचारी, चोर
रहिमन पानी रखिये, बिन पानी सब सुन।
पानी गये न उबरे, मोती मानुष चून।।
श्लेष अलंकार के भेद- 2
अभंग श्लेष –
इसमें शब्द को बिना तोड़े अलग-अलग अर्थ निकलता है।
जैसे :-
रहिमन पानी राखियों, बिन पानी सब सून
पानी गए न ऊबरै, मोती मानस चून
सभंग श्लेष
जहाँ शब्द को तोड़कर अर्थ ग्रहण किये जाए।
जैसे :-
सुबरन को ढुढत फिरत कवि, व्याभिचारी चोर
वीप्सा अलंकार
- इसका अर्थ है –
- आश्चर्य – शाबाश !, आह!, वाह!
- हर्ष – ओये!, ओ हो, वाह रे वा।
- शोक – त्राहि त्राहि, बाप रे बाप, बस करो, हाय हाय।
- ग्लानि/ घृणा – छी – छी, थू – थू, धत तेरे की
जैसे :
शाबाश ! आपने तो कमल कर दिया।
आह! कितना सुहावना मौसम हो गया है।
प्रश्नालंकार
- जहाँ किसी से कोई प्रश्न किया जाये।
- जहाँ पंक्ति, उक्ति, कथन, वाक्य में प्रश्वाचक चिन्ह या शब्द का प्रयोग हो जैसे ,कौन, क्या, कहाँ, कैसे।
उदाहरण :
जीवन क्या है? निर्झर है।
बसता पानी कोई मोल नहीं।
दो सौ साल यदि मनुष्य की आयु हो तो फिर क्या ख़ुशी अधिक होगी नर की?
वक्रान्ति अलंकार
- जहाँ किसी बात, कथन को सीधे सीधे न कहकर घुमा फिरकर कहा जाये।
- जहाँ कहने वाला किसी उक्ति/ पंक्ति से अलग अर्थ व भाव को कहना चाहता तो परन्तु सुनने वाला पंक्ति का अलग अर्थ ले लेता है।
जैसे :
मैंने आज तक आपके जैसे हरिश्चंद नहीं देखा
आप तो बहुत बढे हरिश्चंद्र हो।
अर्थालंकार के भेद
उपमा अलंकार
यहाँ किसी एक वस्तु, व्यक्ति, प्राणी, की किसी दूसरी वस्तु, प्राणी के साथ गुण, धर्म, जाती, रंग, रूप, आकार, प्रकार किसी भी आधार पर तुलना की जाये तो वहाँ उपमा अलंकार होता है।
उपमान – उपमेय में जहाँ तुलना दिखाई जाये।
उपमा के अंग
उपमा के चार अंग है।
- उपमान – जिससे तुलना की जाये, प्रकृति जिसकी पहले से प्रशिद्धि हो, जो पहले से मौजूद हो।
- उपमेय – जिसकी तुलना की जाये। जो बाद में प्रसिद्ध हुआ हो।
- वाचक शब्द – तुलना व समानता को बताने वाला शब्द।
- साधारण धर्म – जो उपमान – उपमेय दोनों में विधमान हो।
EX:
पीपर (उपमान) पात सरिस (वाचक शब्द) मन (उपमेय) डोला (साधारण धर्म)
मेरा मुख चन्द्रमा के सामान है।
उपमा के वाचक शब्द :
से, सा, सम, समान, सरिस, डव, तुल्य, ज्यों, त्यों, जैसा, वैसा, तैसा, कैसा
२. से, सा, सी, के साथ योजक चिन्ह (-) का प्रयोग होता है सागर-सा हृदय मेरा मन भी लहराता है-
उत्प्रेक्षा अलंकार
- जहां उपमाय में उपमान की संज्ञा दिखाई जाए।
- जहाँ किसी एक वस्तु पदार्थ, प्राणी की किसी दूसरी वास्तु, पदार्थ, प्राणी में सम्भावना बताई जाए।
- सम्भावना को प्रकट करने वाले वाचक शब्द-
- मनु, जणू, मनो, जनो, मनो, जानो, जनहु, किन्तु, परन्तु, लेकिन, वरन, बल्कि, चूँकि, तनु आदि
उदा– मानहु, नीलमणि पर्वत , आतप परयो प्रभात
रूपक अलंकार
- समानता, अभिन्नता, अभेद, एकरूपता, जहाँ किसी एक वस्तु, पदार्थ, प्राणी की तुलना किसी दूसरी वस्तु पदार्थ प्राणी के साथ समानता या अभिन्नता बताई जाए।
- जहाँ उपमान में उपमेय का अभेद आरोप किया जाये।
- जहाँ उपमान व उपमेय में समानता/ अभिन्नता/ एकरूपता दिखायी जाए
जैसे-
- चरण कमल बन्दों हरी राई
- चरण सरोज पखरण लागा
- एक राम घनश्याम ते चातक तुलसीदास
- पायो जी मेने प्रेम रतन धन पायो
अतिश्योक्ति अलंकार
- बढ़ा-चढ़ाकर कहना
- जहां किसी वस्तु, पदार्थ, प्राणी गुणों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया किया जाता हो।
जैसे:-
- आगे नदियां पड़ी अपार, घोडा कैसे जाए पार
- राजा ने सोचा इस पार, तब तक घोडा था उस पार
- हनुमान की पूंछ में लग न पायी आग
- लंका साड़ी जल गयी, गए निशाचर भाग
- चढ़ चेतक तलबार उठा करता था
- भूतल पानी को सिर काट- काट करता था सफल जवानी को
भ्रांतिमान अलंकार
- जहां भ्रम, भ्रान्ति हो
- जहाँ किसी पद्यांश या काव्य पंक्ति में गुण धर्म, जाति, रंग वस्तु, रूप, आकार, प्रकार के कारण दो अलग- अलग वस्तु पदार्थ प्राणी के बीच भृम अर्थात भ्रान्ति उत्पन्न करता हो।
- भ्रान्तिमान अलंकार में दो वस्तु प्राणी में पहले भ्रम उत्पन्न होता है फिर छन / पल में भ्रम दूर हो जाता है।
नाक का मोती, आधार की कांति से
बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से
विरोधाभास अलंकार
- जहाँ वास्तव में विरोध न हो केवल विरोध का आभास हो।
- विरोधावास अलंकार में निषेधात्मक शब्द का प्रयोग करके कार्य को होने से मन किया जाता है परन्तु फिर भी कार्य होता है।
जैसे:-
- न खुदा न मिला, न विसाले सनम
- जब से है आरव लगी तब से न आरव लगी
- न खुद सोया न मुझे सोने दिया
- यहाँ गाडी खड़ी करना मना है
- शोर करना मन है, शोर मत करो
विभावना अलंकार
- जहाँ बिना कारण के कार्य की उत्पत्ति हो।
- जहाँ कार्य के होने का पहले से कोई कारण मौजूद न हो।
जैसे :-
बिना पग चले, सुने बिन काना
कर बिना कर्म करे, विधि नाना
अनन रहित सकल रस भोगी
बिन वाणी वक्त बढ़ जोगी
अन्योक्ति अलंकार
जहाँ किसी काव्य, पुस्तक या प्रसिद्ध व्यक्ति, नेता, महापुरुष, कथन व् प्रसिद्ध पंक्ति का प्रयोग अपने लिए उदाहरण के रूप प्रस्तुत करते हैं वहां अन्योक्ति अलंकार होता है।
जैसे:-
अबला जीवन तुम्हारी यही कहानी
आँचल में है दूध और आँखों में पानी
काव्यलिंग अलंकार
- किसी समान्य बात कथन, घटना का विशेष कथन व्यक्ति द्वारा समर्थन काव्यलिंग अलंकार कहलाता है।
- किसी छोटी घटना बात को बड़ी घटना या बात से जहाँ समर्थन मिल जाए वहां काव्यलिंग अलंकार होता है।
जैसे :-
कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय
वा खाये बौराये, जग वा पाए बौराये
मानवीकरण अलंकार
- जहाँ जड़ वस्तु पदार्थ में चेतन की अनुभूति कराई जाए।
- जहाँ निर्जीव वस्तु पदार्थ में संजीवता का वर्णन हो।
- जहाँ मनुष्य का प्रकृति के साथ सम्बन्ध स्थापित हो।
जैसे :-
सुनो ऐ! संगमरमर की दीवारों आगे नहीं है कुछ भी तुम्हारे
संदेह- संशय
यह मुख है या चंद्र है
जैसे :-
साड़ी बीच नारी है कि नारी बीच साड़ी है
कि सारी ही की नारी है कि नारी ही की साडी है
प्रतीप अलंकार
- जहाँ उपमान के स्थान पर उपमेय को रखा जाए।
- जहाँ उपमान- उपमेय को उल्टा कर दिया जाए।
नयन के समान कमल है
मुख के समान चंद्र है
- दृष्टांत :- एक म्यान में दो तलवारें कभी नहीं रह सकती किसी और पर प्रेम नारियां पति का क्या सह सकती हैं।
- अपन्हुति – यह चेहरा नहीं गुलाब का ताज़ा फूल है
- विशेषोक्ति – सोवत जगत सपन बस रस बिन चैन कुचैन
- उल्लेख- तू रूप है किरण में सौंदर्य है सुमन में
- तू प्राण है पतन में विस्तार है गगन में
- अर्थान्तर न्यास- बड़े न हुजे गुणन बिनु, विरद बढ़ाइ जाए -कहत धतूरे सो कनक गहनों गड़ो न जाए
आपको हमारी पोस्ट alankar in hindi कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएं।
यह पोस्ट बहुत ही हेल्पफुल है।